Sunday, November 13, 2016

500 व 1000 के नोट बंद करना देश के लिए घातक - जाने कैसे



काला धन
आज देश में जितनी भी अघोषित आय है वो एक तो टैक्स चोरी का है और दूसरा प्रॉपर्टी (प्लाट, मकान, जमीन) डीलिंग का है...
जिसमे भी अधिक हिस्सा प्रॉपर्टी डीलिंग से आया हुआ पैसे का है... जो कि गरीब किसान, मध्यम वर्ग व उच्च वर्ग के लोगों ने अपनी जरुरत के लिए, नए व्यापार उद्योग लगाने के लिए प्लाट, मकान, जमीन बेचकर इकट्ठा किया है...

आज यदि आपके प्लाट की सरकारी DLC रेट 10 लाख रू है और बाजार की रेट 35 लाख है तो आप अपना प्लाट 10 लाख में बेचेंगे या 35 लाख में?? जिसमे 10 लाख white मनी और 25 लाख ब्लैक कहलायेगा, जो कि आपके नए व्यापार के लिए कैपिटल मनी है।
और यदि DLC रेट 35 लाख हो और प्लाट की मार्केट रेट 30 लाख हो, तो भी रजिस्ट्री की रेट DLC रेट (35 लाख) से ही लगेगी जो कि अनुचित होगी। सरकार भी DLC नहीं बढ़ाना चाहती, क्योंकि फिर किसानों की भूमि अधिग्रहण करने पर सरकार को भी अधिक मुआवज़ा देना पड़ेगा ।  आम लोगों की तरह सरकारी अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी डिपार्मेंट भी  फण्ड रेज करने के लिए कम रेट में जमीन खरीद कर प्लाट काटकर कर उसे बाजार की रेट से बेचते है... जब सरकार खुद DLC रेट से प्लाट नहीं बेचती है तो फिर आम जनता पर यह  दबाव क्यों...??

इसलिए अघोषित आय प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त का अभिन्न हिस्सा है, यह बदस्तूर जारी रहेगा। लेकिन इस नकदी धन को नष्ट करने से प्रॉपर्टी कारोबार से जुड़े लाखों लोगों का रोजगार जरूर छीन गया...

कपड़ा पहले मील से निकलता है, फिर रंगाई के लिए जाता है, फिर छपाई के लिए, फिर उसपर कारीगरी के लिए, फिर सिलाई के लिए, इस तरह कई उत्पाद कई स्तर से गुजर कर ग्राहक के हाथ में आता है.... जिसमे यदि हर स्तर पर टैक्स व वैट लगाया जाए तो कपडे की कीमत इतनी होगी की उपभोक्ता खरीद नहीं पाएंगे और ऐसे में बड़ी इंडस्ट्रीज़ का कपडा लोगों को सस्ता पड़ेगा और इस उद्योग से जुड़े सभी कारीगर व मजदूरों की रोजगारी छीन जाएगी। इन इतनी कड़ियों में यदि एक भी स्तर पर बिल न कटे तो दूसरा कोई बिल नहीं दे सकता।

जो उद्योग व्यापारी टैक्स दे सकते हैं वो दे रहे हैं और जो फिर भी न दे तो उनके वहाँ छापे भी पड़ते रहेंगे। लेकिन कर्रेंसी बदलने से टैक्स चोरी नहीं रुक सकती। क्योंकि जो रोजगार सरकार लोगों को लाखो करोड़ों का टैक्स लेकर भी नहीं दे सकती वही रोजगार लोगों को यही व्यापारी वर्ग दे रहा है...

फिर भी सरकार की इस स्कीम से घरेलु उद्योग नष्ट होगा और कारीगरो के साथ साथ होलसलेर जो बहुत कम मार्जिन पर काम करते हैं वो ख़त्म हो जायेंगे जिससे 'मेक इन इंडिया' में आने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा होगा उनका रास्ता साफ़ होगा...

आतंकवाद और नक्सलवाद  

नक्सली मजदूरों और ग़रीब गाँव वालो से बॅंक मे नोट चेंज करवा रहे हैं.. 
कश्मीर मे पत्थरबाज और देश भर मे स्लीपर सेल्स, व आतंकियों के मूक समर्थक आतंकियों के लिए नोट चेंज करवा रहे हैं...
31 दिसम्बर से पहले वे अपना बहुत सा पैसा कम नुकसान के साथ सेटल कर लेंगे...


भ्रस्टाचार

क्या नोट बदलने पर भ्रस्टाचार रुकेगा??
भ्रस्टाचार में एक बदलाव जरूर आएगा कि पहले 500 व 1000 के नोट की जगह यह अब 2000 के नोट से होगा और लोग थोड़ा थोड़ा धन लगातार कहीं न कहीं लगाते रहेंगे, जिसके रास्ते भी खोज लिए जाएंगे।

मोदी जी की इस स्कीम से भ्रस्टाचार को ख़त्म करने का भ्रम और भावना वैसी ही है जैसा की लोकपाल विधेयक के आंदोलन को लेकर हुई थी..

सोशल मीडिया पर लोग अमीरों और नेताओं द्वारा अपने नौकरों की छुट्टी करने पड़ चुटकी ले रहे हैं, लेकिन उन नौकरों के रोजगार खोने के दर्द को कोई नहीं देख रहा....

 


लोगों को यह सोचने और समझने की आवश्यकता है कि -

करोड़ों अरबों रूपए की अघोषित आय जो नष्ट की जा रही है वो नुक्सान सिर्फ कुछ लोगों का है या पुरे देश का ?

यदि देश की करेंसी विदेशों में जाए तो देश को नुक्सान होता है, उसी तरह देश का पैसा देश में ही नष्ट करने से फायदा कैसे??

इस अघोषित धन में सरकार का हिस्सा मात्र 5 - 30% का है बाकी का 70 - 95 % तो लोगों की मेहनत का ही है, जिसे सरकार नष्ट करने पर लोगों को विवश क्यों कर रही है..? देश की Capitalist Economy की कमर तोड़ने की आखिर यह कवायद किस लिए और किसके लिए...?

अब तक किसी भी राज्य में एक दिन भी बंद या हड़ताल होती तो उससे हुए नुक्सान का आंकड़ा मीडिया दिखा देता, लेकिन इस स्कीम के लागू होने के बाद पुरे देश में बंद जैसे हालात हैं और लाखों करोड़ों का जो रोजाना नुक्सान हो रहा है उसपर सब चुप क्यों....??

विदेशी ताकत

पश्चिमी देशों को एक बात हमेशा अचंभित करती आयी है कि कुछ वर्ष पहले खतरनाक वैश्विक मंदी में जहां उनके यहाँ कई बड़े बैंक दिवालिया हो गए, कई कारोबार नष्ट हो गए, हजारो लोगो की नौकरियां चली गयी, ऐसे में भारत पर इसका कोई असर क्यों नहीं पड़ा, क्यों यहाँ  औद्योगीकरण और उपभोक्ता वर्ग लगातार बढ़ रहा है...

इसका उन्होंने अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि इंडियन इकॉनमी को यहाँ पर कैपिटलिस्ट इकॉनमी का परोक्ष रूप से सपोर्ट है... लोगों के पास विभिन्न स्त्रोतों से आया हुआ बहुत सा कैपिटल मनी है.... यदि किसी को एक व्यापार में नुक्सान हो तो वह आसानी से अपने कॅश रिज़र्व से दूसरा व्यापार स्विच कर लेता है....  जिसके लिए बैंक भी लोन न दे पाए उसके लिए व्यापारी आपस में लेनदेन करके या जमीन जायदाद बेचकर अपने व्यापार में उतार चढ़ाव को झेलते हैं और व्यापार को आगे बढ़ाते हैं अथवा नए व्यापार उद्योग की शुरुआत करते हैं...  भारत व राज्य सरकार करीब  90 लाख लोगों को नौकरी देती है, लेकिन छोटे से बड़े स्तर के व्यापार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करोड़ों लोगो को रोजगार मिल रहा है... और यही कुछ कारण है जिसके लिए लोग बैंको पर कम निर्भर हैं और यहाँ एक अलग से कैपिटलिस्ट इकॉनमी चल रही है जिसकी वजह से आर्थिक मंदी का भारत पर कोई असर नहीं पड़ता। क्योंकि कॅश चाहे सरकारी खजाने में हो या व्यापारियों के पास वो किसी न किसी तरह से मार्किट में रोटेशन में आ रहा है और हर स्तर के लोगों को मदद कर रहा है...

पश्चिमी देशों के लिए भारत की इस कैपिटलिस्ट इकॉनमी जो कि भारत की आर्थिक शक्ति का एक मजबूत स्तम्भ है, उसे ख़त्म करना जरुरी हो गया...  सभी जानते हैं पश्चिमी देश किस तरह देश को विभिन्न तरीकों से नुक्सान पहुचाने के लिए NGOs को स्पांसर करते आये हैं और इन NGO के लोग राजनीतिकों को प्रभावित कर उनसे अपना मकसद पूरा करते आये हैं... हो सकता है "अर्थक्रांति" NGO, जिसने मोदी जी को यह सुझाव दिया है वो भी इसी कड़ी का हिस्सा हो..

इस NGO के लोग सबसे पहले बाबा रामदेव से मिले और फिर बीजेपी के बड़े नेताओं से..  अर्थक्रांति की वेबसाइट पर न तो इनके  NGO के बारे में स्पष्ट जानकारी है और न ही इनके द्वारा किये गए किसी सामाजिक कार्य की... यदि कुछ है तो सिर्फ इनके प्रपोजल का बखान... न जाने किस पैसे के दम पर इन्होंने देश भर में 12 ऑफिस स्थापित कर लिए... और इनका उद्देश्य है देश के बड़े बड़े राजनेताओं और अन्य प्रभावशाली लोगों से मिलकर उन्हें अपनी स्कीम के लिए प्रभावित करना।

"अर्थक्रांति" के सुझाव का अगला हिस्सा यह है कि सभी 56 तरह के टैक्स माफ़ कर दिए जाए और बैंकिंग के सभी 2000 से ऊपर के ट्रांसक्शन पर 2% चार्ज लगाया जाए, जिससे केंद्र और राज्य सरकार की आय होगी।
जनता 2% का चार्ज बचाने के लिए बैंक में पैसे ही जमा नहीं करवाएगी और जो जमा है हो सकता है उसे भी निकाल ले.... जिससे सरकार की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाएगी।  और यही यह NGO चाहता है...

और मोदी जी भी इस शकुनि ("अर्थक्रांति") के सुझावों पर चल रहे हैं...
 
"अर्थक्रांति" की पोल खोलता उन्ही से जुड़े एक व्यक्ति के विचार -
http://www.sabhlokcity.com/2014/01/a-comprehensive-demolition-of-the-dangerous-arthakrantibjp-bank-transaction-tax-proposal/

सरकार की मंशा
सरकार चाहती है अधिकतम लेनदेन विदेशों की तरह यहां भी बैंक से हो, लेकिन वो वास्तविक धरातल की हकीकत यह नहीं समझती की हर छोटा बड़ा दुकानदार कार्ड-स्वाइप मशीन नहीं रखता जिस पर ग्राहक के 2% एक्स्ट्रा चार्ज लगता है और चैक से पैसे लेने पर चैक बाउंस होने का खतरा रहता है और चैक क्लियर होने में 2 दिन का समय भी लगता है...

इसलिए ग्राहक और दुकानदार दोनों ही कैश में डील करना ही पसंद करते हैं..... उनकी इस लेन देन की प्रक्रिया को सरकार इस तरह दबाव में लेकर बदल नहीं सकती.

स्कीम के दुष्प्रभाव

1) देश की जितनी अरबों खरबो रुपये की पूंजी नष्ट हो रही है उससे देश को बहुत बड़ा आर्थिक घाटा हुआ है, जिसकी भरपाई करने में फिरसे कई दशक लग जायेंगे।

2) फण्ड रेज करने के लिए लोग अपनी  प्रॉपर्टी नहीं बेच पाएंगे 

 
3) कई तरह के कारोबार मंद होंगे और बंद होंगे।

4) समाज के हर स्तर पर बेरोजगारी बढ़ेगी

5) व्यापारियों पर कर्ज बढ़ेगा।

6) देश में आर्थिक मंदी आएगी

7) औद्योगीकरण कम होगा

8) धन के अभाव में घरेलु उद्योग बंद होंगे

9) बाजार विदेशी कंपनियों के उत्पादों पर अधिक निर्भर होगा

10) रूपया डॉलर के आगे और कमजोर होगा

11) जब तक लोग 500, 1000, 2000 के नोट में असली नकली का फर्क जान पाएंगे तब तक नकली नोट बाज़ार में आजायेंगे 


12) 2000 के नोटों से हवाला कारोबार आसानी से होगा, ब्लैक मनी आसानी से इकट्ठा होगा।

सरकार को क्या करना चाहिए था

1) देश में जिन रास्तों से नकली नॉट आते हैं उन पर कार्यवाही की पुलिस और सेना को खुली छूट, जिसमे  अंडरवर्ल्ड, कश्मीर के अलगाववादी और बांग्लादेश से गुसपैठ करते लोग मुख्य ..

2) सभी सरकारी कर्मचारियों और राजनेताओं द्वारा इनकम घोषित की जाए, तथा उनके अफिडेविट की सत्यता की जांच हर 3 साल में एक बार विशेष टीम द्वारा की जाए...

3) सभी सरकारी प्रोजेक्ट पर और उनकी गुणवत्ता पर निगरानी रखी जाए....

4) कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पास भ्रस्टाचार पर ACB द्वारा जांच किये गए 150 से 200 मामले लंबित पड़े हैं... जिस पर कार्यवाही के आदेश सरकार नहीं कर रही और भ्रस्टाचारियों से अपने स्तर पर ही सेटलमेंट कर रही है... इस पर केंद्र सरकार को ACB को बिना CM की अनुमति के कार्यवाही करने के विशेष अधिकार देने चाहिए।

सरकार का उद्देश्य सिर्फ काला धन जब्त करना होता तो income tax की raid से वसूला जा सकता था.... या फिर नोटबंदी के साथ उन्हें टैक्स जमा करवाने का एक मौका कानूनी कार्यवाही (सजा) की छूट के साथ दिया जाता तो बिना रेड डाले ही देश के खजाने में ढेर लग जाता..... लेकिन सरकार ने इसके विपरीत, अघोषित आय को सरकार को बताने के जुर्म में 200% जुर्माना और कानूनी कार्यवाही का दबाव बनाकर देश के अरबों रूपए नष्ट करने का लोगों पर दबाव बनाया है..... जिससे यह साबित होता है कि सरकार का उद्देश्य 20-30% टैक्स वसूलना नहीं, बल्कि बाकी की 70-80% पूंजी को ख़त्म कर देश की इकॉनमी के स्तम्भ कैपिटलिस्ट इकॉनमी को ख़त्म करना है, जिससे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से करोड़ों लोग रोजगार पा रहे थे... 

सरकार के ऐसे तुगलकी फरमान से त्रस्त जनता अगले चुनावों में बीजेपी को नकार सकती है, जो कि कांग्रेस व अन्य दलों के लिए जीवन दान का काम करेगा।  

इसलिए सरकार के हर फैसले को निष्पक्षता से अवलोकन करना हमारी जिम्मेदारी है...
यदि वो गलत करे तो उसे ऐसा करने से रोकने की हमें हर संभव कोशिश करनी चाहिए...
राष्ट्र के प्रति यही हमारा कर्त्तव्य है... वरना देश की दुर्गति के कारण बीजेपी भी नहीं बचेगी।


~ चेतन सिंह

1 comment:

  1. जानकारीप्रद लेख। पूरे देश के भाग्य का फैसला बिना अच्छी तरह से सोचे समझे कैसे कर लेते हैं ये लोग।

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